साधन से साधक तक: दिन में सिर्फ एक बार, कठिन साधना के साथ अन्न-जल ग्रहण करते हैं जैन संत, होती है ये शर्त

हम और आप थाली या किसी पात्र में ही भोजन करते हैं। उसी तरह पानी भी पीते हैं। यदि पात्र ना हो तो भोजन व जल ग्रहण करने में समस्या खड़ी हो जाएगी।