
फिरोजाबाद नगर एवं जनपद : एक ऐतिहासिक दृष्टि (Firozabad History)
– कृष्ण कुमार ‘कनक’ एवं गौरव ‘गाफिल’
फिरोजाबाद नगर की स्थापना का इतिहास (Firozabad History) उतना ही उलझा हुआ है जितना कि किसी साधू की जटाएँ। किंतु यदि कोई शोधार्थी सलीके से इस विषय पर दृष्टिपात करे तो वह निश्चित ही इस रहस्य को खोजने में सफल होगा। इस संदर्भ में सर्वस्वीकृत तथ्य यह है कि फिरोजाबाद नगर की स्थापना अकबर के समय में 1554 ई. से 1566 ई. के मध्य हुई होगी। इस संदर्भ में यूँ तो आधा दर्जन से अधिक मत प्रचलित हैं, किंतु मुख्य रूप से फिरोजाबाद नगर की स्थापना के दो मत ही स्वीकारणीय हैं, जोकि निम्नलिखित हैं-
1- प्राक् मत :-
इस मत के अनुसार 1566 ई. में अकबर के दरबारी नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल, जब गया से अपने पितरों का पिण्ड दान करके वापस लौट रहे थे, तो आशाबाद (अब आसफाबाद) नामक गाँव के कुछ लुटेरों ने उन्हें लूट लिया। उन दिनों अकबर ने आगरा को अपनी राजधानी बना लिया था और वह फतेहपुर सीकरी की भव्यता तैयार करने में व्यस्त था।
जब टोडरमल ने इस बात की शिकायत अकबर से की तो अकबर ने अपने हरम (रनिवास) के ख्वाजासरा (हिजड़ा) फीरोजशाह को उन लुटेरों को समाप्त करने हेतु भेजा। उसने लुटेरों को समाप्त तो किया ही साथ ही उसने फिरोजाबाद नगर की स्थापना भी की। उसने आशाबाद गाँव को पूरी तरह बर्वाद कर दिया था और लुटेरों का नामोनिशान मिटा तक दिया। इस तथ्य के समर्थक सुप्रसिद्ध लेखक रतनलाल बंसल, गणेशीलाल शर्मा ‘प्राणेश’, जगन्नाथ लहरी और डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ हैं।
2- अद्यतन मत :-
इस मत के अनुसार जब मुगलों की राजधानी दिल्ली हुआ करती थी, तब वहाँ कुछ मुस्लिम शीशगर (काँच के कारीगर) अपना काम किया करते थे। किंतु उनके काम में काँच बनाने के लिए बहुत अधिक ताप वाली अग्नि की व्यवस्था करनी होती थी जिसके कारण बहुत अधिक धुँआ होता था, जिसके कारण आस-पास के नागरिकों ने इस बात की शिकायत तत्कालीन बादशाह से की। अतः बादशाह ने उन शीशगरों को राजधानी से बहुत दूर स्थापित करने का आदेश दिया। तब वे शीशगर यमुना के किनारे-किनारे चलते हुए चंदवार रियासत के समीप बसे दतौजी और आशावाद गाँवों की जमीन पर आकर बस गए। वे यहीं रहकर चंदवार रियासत के राजा के सहयोग से काँच का काम करते थे। यही कारण था कि वे जिस स्थान पर बसे थे, वह स्थान मुहल्ला शीशग्रान कहलाया, जो कि आज भी विद्यमान है।
पुनः जैन सत्ता शीशगरों के लिए मुसीबत
इसी बीच दिल्ली में तख्ता पलट हुआ और दिल्ली की सल्तनत शेरशाह सूरी ने छीन ली। उसने जब शेरशाह सूरी मार्ग का निर्माण कराया तब उसने इन शीशगरों के लिए शाही मस्जिद का निर्माण कराया था जो कि आज भी कटरा पठानान में स्थित है। इस तथ्य का प्रमाण आगरा गजेटियर 1884 ई. में उपलब्ध है। इसी समय चंद्रनगर रियासत में भी राजसिंहासन पर बदलाव हुआ और नए राजा ने इन शीशगरों को सहायता देना बंद कर दिया, जिसका मुख्य कारण यह था कि चंदवार रियासत में प्राचीन काल से ही जैन शासकों का शासन रहा था, किंतु कुछ समय तक यहाँ चौहानों का भी शासन रहा। चौहानों के समय तक तो शीशगरों को चंदवार रियासत से सहायता मिलती रही किंतु जैसे ही पुनः जैन राजा सत्ता में आए वैसे ही उन्होंने शीशगरों को सहायता देना बंद कर दिया। जैसा कि सर्वविदित है कि जैन समाज हिंसा का घोर विरोधी होता है किंतु ये शीशगर मुस्लिम होने के कारण मांसाहार भी करते हैं।
यही कारण था कि शीशगरों के कार्य का कोई मोल नहीं रहा। उनके काँच के सामान भी बिकना बंद हो गए और वे किसानों के यहाँ मजदूरी करने को विवश हो गए। साथ ही बड़ा संकट यह भी था कि हर कोई किसान इन्हें चंदवार के राज सिंहासन के भय से काम भी नहीं देता था। इस तरह ये शीशगर अच्छे काँच के कारीगर होते हुए भी बेरोजगार हो गए थे।
टोडरमल और फ़ीरोज़शाह का आगमन
इसी बीच जब सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक महाराज टोडरमल गया से अपने पितरों का पिण्ड दान करके लौटे तो एक रात इन्हीं शीशगरों की बस्ती में ठहरे। शीशगरों ने अपनी सारी व्यथा टोडरमल को कह सुनाई। तब टोडरमल उन्हें यह आश्वासन देकर गए कि वे जल्दी ही शीशगरों की समुचित व्यवस्था करा देंगे। जब टोडरमल ने शीशगरों की कहानी सम्राट अकबर को सुनाई तो उन्होंने उन शीशगरों की व्यवस्था देखने के लिए अपने सबसे विश्वास-पात्र सैनिक फीरोजशाह को भेजा। फीरोजशाह कुशल योद्धा तथा अतिशय बलशाली पठान सैनिक था। वह अपने साथ पठानों की एक भारीभरकम सेना लेकर आया और उसने शाही मस्जिद के समीप ही छावनी बनाई तथा चंदवार रियासत पर चढाई करके उसे पूरी तरह तहस-नहस कर दिया और स्वयं रियासत सभालने लगा। Firozabad History
उसने अपना महल शाही मस्जिद के ठीक सामने बनवाया था जिसके खंडहर के भ्रंश आज भी उपस्थित हैं। तथापि रतनलाल बंसल जी की पुस्तक ‘चंदवार तथा फिरोजाबाद का प्राचीन इतिहास’ नामक कृति के मुख पृष्ठ पर इस महल के खंडहर का अच्छा-खासा चित्र अंकित है। फीरोजशाह की दो पत्नियाँ और बच्चे भी थे। वह स्वयं भी पठान था और उसके सभी सैनिक भी। यही कारण था कि उसने जिस स्थापन पर छावनी बनाई थी उसे आज भी कटरा पठानान के नाम से जाना जाता है। यहाँ ध्यातव्य तथ्य यह है कि शीशगर पहले आकर बसे थे किंतु वे श्रमिक वर्ग के लोग थे अतः वे झुग्गी-झोपड़ियों में रहते थे यही कारण है कि उनकी बस्ती पहले बसी थी किंतु इस बात का कोई ठोस प्रमाण अब वहाँ उपस्थित नहीं है परंतु जिस स्थान पर फीरोजशाह ने छावनी बनाई थी वहाँ उसने अपने महल के साथ साथ सैनिकों के आवास भी पक्के बनवाए थे यही कारण है कि यहाँ दो-तीन सौ साल पुरानी इमारतों के अवशेष आज भी उपलब्ध हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि फिरोजाबाद नगर का पहला बसने वाला मुहल्ला तो शीशग्रान ही है किंतु स्थाई आवासों का निर्माण पहली बार मुहल्ला कटरा पठानान में हुआ था। यही कारण है कि लोग फिरोजाबाद नगर का प्रथम बसने वाला मुहल्ला भ्रमवश कटरा पठानान को ही स्वीकार कर लेते हैं।
फ़िरोज़ाबाद का नामकरण | When was Firozabad established?
जब कटरा पठानान बसा यानि कि आबाद हुआ तो उसके बाद मुगल दरबार द्वारा भेजे गए 1569ई. के एक शाही फरमान में पहली बार फीरोजशाह के नाम पर इस नगर को ‘फीरोजाबाद’ नाम से संबोधित किया गया था। शाही फरमान के संदर्भ में रतनलाल बंसल जी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि ‘मैंने स्वयं यह शाही फरमान सेठ छदामीलाल जैन मंदिर के संग्रहालय में सुरक्षित देखा था। इस तथ्य की पुष्टि जगन्नाथ लहरी जी ने भी अपनी पुस्तक में की है। इस प्रकार शाही फरमान में तो इस नगर को फीरोजाबाद ही कहा गया था किंतु सामान्य जनमानस द्वारा इसका उच्चारण फिरोजाबाद ही किया जाता रहा है। अतः फिरोजाबाद ही स्वीकारा जाना अधिक समीचीन है। हालाँकि किवदंती है कि चंदवार रियासत में बसे नगर को चंद्रनगर (Firozabad old name) कहा जाता था। और इसी कारण आज भी जब फ़िरोज़ाबाद का नाम बदलने (Firozabad new name) की कवायद होती है तो नाम बदलकर चंद्रनगर किये जाने के लिए ही प्रयास किया जाता रहा है।
सूफी शाह की दरगाह
जब फीरोजशाह की आयु ढल चली थी तब वह एक सूफी संत का शिष्य होकर सूफी मत को ही मानने लगा था और स्वयं भी सूफी संत होकर मानव सेवा में संलग्न रहते हुए स्वर्गीय हुआ था। उसने अपने उस्ताद उन सूफी संत के स्वर्गीय होने पर यमुना के तट पर सूफी साहब की दरगाह का निर्माण कराया था जोकि आज भी वर्तमान है। साथ ही उसने चंदवार रियासत में एक मस्जिद भी बनवाई थी किंतु वह फिरोजाबाद से सात किलोमीटर दूर है और उसके आस-पास सिर्फ हिंदू आबादी ही है यही कारण है कि अब वह मस्जिद खंडहर हो चुकी है किंतु लोग उसे भ्रमवश चंदवार के राजा का महल बता देते हैं, जो कि पूरी तरह अप्रमाणिक है। फीरोजशाह के स्वर्गीय हो जाने के बाद उसके शिष्यों (शागिर्दों) ने उसका भव्य मकबरा बनवाया था जो कि आज भी फिरोजाबाद नगर निगम कार्यालय के मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है। Firozabad History
यद्यपि फिरोजाबाद नगर की स्थापना का यह दूसरा मत ही अधिक विश्वसनीय मालूम होता है। किंतु इस मत को प्रमाणित करने के लिए बहुत अधिक साक्ष्य लिखित रूप में उपलब्ध नहीं हैं। परंतु वस्तु स्थिति तथा ऐतिहासिक दृष्टि से दूसरा मत ही स्वीकृत किए जाने योग्य है। इस मत को मानने वालों में गुँदाऊ गाँव के निवासी बाबूराम यादव, डॉ. संध्या द्विवेदी, रामपाल यादव, गौरव चौहान ‘गाफिल’, सचिन कुमार बघेल, कृष्ण कुमार ‘कनक’ तथा राघवेन्द्र सिंह जादौन हैं।
द्वितीय मत को स्वीकार करने के पर्याप्त तर्क
द्वितीय मत को स्वीकारने वालों के पास प्रथम मत को अस्वीकार करने के पर्याप्त तर्क हैं जो कि निम्नलिखित है-
1- प्रथम मत में कहा गया है कि टोडर मल को आशाबाद पर लुटेरों ने लूट लिया था तब यह प्रश्न उठता है कि सम्राट अकबर के सबसे करीबी एवं नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल ‘गया’ यानी कि बिहार से आशाबाद गाँव (वर्तमान आसफाबाद) तक सुरक्षित चले आए और तत्कालीन राष्ट्रीय राजधानी आगरा से मात्र चालीस किलोमीटर की दूरी पर उन्हें लुटेरों ने लूट लिया, यह बात पूरी तरह से काल्पनिक प्रतीत होती है।
2- प्रथम मत में फीरोजशाह को ख्वाजासरा (हिजडा) बताया गया है जबकि उसकी दो पत्नियाँ भी थीं जिनके लिए उसने अपने महल के द्वार के ठीक सामने शाही मस्जिद की दीवार से सटा हुआ एक बगीचा बनवाया था जो कि आज भी वर्तमान है जिसे ‘पामीर बाग’ के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है रानियों का बाग।
3- प्रथम मत में आशाबाद को उजाड़े जाने की बात कही गई है किंतु आशाबाद के संदर्भ में इस प्रकार की जानकारी न तो किसी जगा (कुल पुरोहित) की पुस्तिका में है और न इस बात का कोई प्रमाण ही उपलब्ध है।
4- आशाबाद गाँव यमुना के तट से लगभग 14 किलोमीटर दूर शेरशाह सूरी मार्ग पर पूरी तरह से मैदानी क्षेत्र में बसा था, तो वहाँ लुटेरे क्या करने आए थे और यह बात मान भी लें कि लुटेरे टोडरमल को ही लूटने आए थे, तो भी यह बात स्वीकारने योग्य नहीं है, क्योंकि महाराजा टोडरमल तीर्थ यात्रा से लौटे थे, तो वे अपने साथ खजाना थोडे ही लेकर गए होंगे।
5- अकबर के समय से पूर्व ही शेरशाह सूरी मार्ग बना था। उसी समय शाही मस्जिद का निर्माण भी हुआ। उस समय यदि वहां मुस्लिम आबादी थी ही नहीं, तो इतनी विशालकाय शाही मस्जिद किसके लिए बनवाई गई थी? और यदि मुस्लिम आबादी थी, तो वह कहां थी? क्योंकि यह बात तो प्रमाणित है कि जिस जमीन पर वर्तमान फिरोजाबाद नगर बसा है वह उस समय दतौजी, आशावाद, टापा आदि गांवों की जमीन थी जहां के मूल निवासी आज भी हिंदू ही हैं।
पुराना नाम था चंद्रनगर
उपर्युक्त तर्क नि:संदेह विचारणीय हैं। रही बात चंदवार रियासत की तो वह आस-पास सभी रियासतों जैसे कोटला, गांगिनी, आदि में में सबसे बड़ी थी और प्राचीन भी। इस रियासत का नाम जैन शासक चंद्रसेन के नाम पर पड़ा था। उन दिनों वे सभी गांव चंदवार रियासत के अंतर्गत ही आते थे, जिनकी जमीन पर वर्तमान फिरोजाबाद बसा है। इस प्रकार फिरोजाबाद नगर चंदवार रियासत का ही अंग माना जाएगा। यही कारण है कि वर्तमान समय में फिरोजाबाद नगर के निवासी फिरोजाबाद को चंद्रनगर करने के पक्षपाती हैं और यही उचित भी है।
फ़िरोज़ाबाद का विकास (Development of Firozabad)
फिरोजशाह ने चंदवार रियासत को तो पूरी तरह से ध्वस्त कर ही दिया था साथ ही कटरा पठानान में आबादी बस जाने और सैनिक छावनी स्थापित होने से सुख-सुविधाओं का केंद्र बन गया था। जिसके आकर्षक ने आस-पास के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया और वे कटरा पठानान के आस-पास ही बसते गए। इस बीच संपूर्ण भारत में सत्ता का युद्ध इस भांति चला कि मुगलिया सल्तनत पूरी तरह चरमरा उठी। इस का प्रभाव फिरोजाबाद पर भी हुआ ऐसे में फिरोजाबाद पर कुछ दिनों तक महावन के जाटों ने तथा चौहानों ने अपना कब्जा जमाए रखा। और फिर अंग्रेजों ने जब जनपद व्यवस्था लागू की, तब तक फिरोजाबाद काफी विकसित हो चुका था। अतः इसे आगरा जनपद की तहसील के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। उस समय के एक अंग्रेज अधिकारी ने हजरतपुर के पास एक आयुध निर्माणी कारखाना स्थापित किया, आज उसी स्थान पर सरकारी आयुध निर्माणी कारखाना स्थित है।
नील की खेती | What is Firozabad famous for?
आज फ़िरोज़ाबाद कांच की नगरी (सुहागनगरी) के नाम से जाना जाता है फ़िरोज़ाबाद की काँच की चूड़ियों (Firozabad Bangles) की खनक सम्पूर्ण देश में सुनाई देती है, लेकिन यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि वही फ़िरोज़ाबाद कभी नील के लिए भी प्रसिद्ध था। उसी अंग्रेज अधिकारी ने फिरोजाबाद के आस-पास नील की खेती कराई और एक नील की फैक्ट्री भी लगाई। साथ ही 1911 में करऊ गांव में वन विभाग की एक कोठी का भी निर्माण कराया जो कि आज भी वन विभाग के अधिकारियों का आश्रय स्थल है। स्वतंत्रता संग्राम के समय फिरोजाबाद तहसील के अंतर्गत एक कोतवाली तथा दो थाने थे। यह क्रम स्वतंत्रता के काफी बाद तक चला।
फिरोजाबाद को जनपद का दर्जा
अब तक फिरोजाबाद काफी विकसित हो चुका था। फिरोजाबाद के लोगों को अपने छोटे मोटे कामों के लिए भी आगरा ही जाना पड़ता था तब लोगों को फिरोजाबाद में मुंशिफी लाने की आवश्यकता हुई जिसके लिए काफी लंबा संघर्ष चला और फिर जब मुंशिफी आ गई तो फिरोजाबाद को जनपद का दर्जा दिलाने की बात हुई इसी बीच सांप्रदायिक दंगों के चलते एक बार फिरोजाबाद और गाजियाबाद को जनपद बनाए जाने का मन तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने बनाया किंतु यह प्रयास फलीभूत न हो सका किंतु एस.डी.एम. अवश्य ही तीन दिन फिरोजाबाद और तीन दिन एत्मादपुर बैठने लगे और एक डी.एस.पी. की भी स्थाई व्यवस्था कर दी गई। किंतु जनपद बनाने की मांग निरंतर जारी रही और जब गंगाराम जी सांसद बने तो उन्होंने भी प्रयास प्रारंभ कर दिया इस प्रकार 5 फरवरी 1989 को तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. नारायण दत्त तिवारी जी ने फिरोजाबाद को पूर्ण जनपद बनाए जाने की घोषणा की।
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उस समय यमुना नदी को फिरोजाबाद तथा आगरा जनपद की सीमा बनाया गया था इस प्रकार आगरा जनपद की दो तहसील एत्मादपुर और फिरोजाबाद तथा मैनपुरी जनपद की दो तहसील शिकोहाबाद तथा जसराना को मिलाकर जनपद बनाया गया था एत्मादपुर के निवासियों के एक माह तक चले कड़े विरोध के बाद एत्मादपुर को आगरा में जोड़ा गया तथा टुंडला को तहसील का दर्जा देकर पुनः चार तहसीलों का कोरम पूरा किया गया। उस समय डाक बंगले को जिलाधिकारी कार्यालय बनाया गया तथा सभी प्रमुख कार्यालय सुहागनगर में स्थापित हुए। तत्पश्चात कुछ वर्षों तक न्यायालय गांधी पार्क में चला और जब दबरई पर निर्माण कार्य पूरा हो गया तब सभी प्रमुख कार्यालय तथा न्यायालय दबरई पर पहुंचा दिए गए। वर्तमान समय में भी कई कार्यालय सुहागनगर में ही हैं।
फिरोजाबाद जनपद के प्रमुख ऐतिहासिक व्यक्तित्व
यदि फिरोजाबाद जनपद के प्रमुख ऐतिहासिक व्यक्तियों की बात करें तो सबसे पहला नाम राजा चंद्रसेन का ही आता है। फिर कवयत्री चंपा, मुनि ब्रह्मगुललाल, बुद्धि राज बोधा, सेठ महासिंह श्रोत्रिय, सेठ टुंडामल,सेठ कन्हैयालाल गोयंका आदि के अतिरिक्त स्वतंत्रता सेनानियों में सेठ रामचंद्र पालीवाल, जगन्नाथ लहरी, रतनलाल बंसल, मुंशीलाल गोस्वामी, पं. भूपसिंह शर्मा, चौ. गंधर्व सिंह यादव, पं. गयाप्रसाद शर्मा तथा जन प्रतिनिधियों में गंगाराम,राजाराम, रामजी लाल सुमन, मनीष असीजा तथा साहित्यकारों में श्रीधर पाठक, पद्मभूषण दादा बनारसीदास चतुर्वेदी, श्रीराम शर्मा, उमेश जोशी,प्रकाश मनु, प्रो. उदय प्रताप सिंह यादव, डॉ.रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’, पुन्नी सिंह यादव, डॉ. ओमपाल सिंह निड़र, अरविंद तिवारी आदि नाम प्रमुख हैं।
– कृष्ण कुमार ‘कनक’
प्रबंध-सचिव, प्रज्ञा हिंदी सेवार्थ संस्थान ट्रस्ट
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